Tuesday, 7 March 2017

अधूरी कविता / संजय कुंदन

एक अधूरी कविता मिटाई न जा सकी
वह चलती रही मेरे साथ-साथ
मैंने एक आवेदन लिखना चाहा
वह आ खड़ी हुई और बोली- बना लो मुझे एक प्रार्थना
एक दिन सबके सामने उसने कहा- मुझे प्रेमपत्र बना कर देखो
मैं झेंप गया

कई बार धमकाया उसे
कि वह न पड़े मेरे मामले में
और हो सके तो मुझे छोड़ दे

एक दिन गर्मागर्म बहस में
जब मेरे तर्क गिर रहे थे जमीन पर
वह उतर आई मेरे पक्ष में
पलट गई बाजी
बगलें झाँकने लगे मेरे विरोधी
जो इस समय के दिग्गज वक्ता थे।

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