Tuesday, 7 March 2017

अकेला आदमी / नरेश अग्रवाल

वो अकेला आदमी
किसी भीड़ में शामिल नहीं था
किसी के सुख-दुख में भी नहीं,
वो अकेला था
जैसे किसी भवन पर उगा हुआ
बरगद का पेड़
अपनी जड़ें खुद ढूँढ़ता हुआ
सूखी दीवारों पर जीता हुआ
यहाँ भी जीवन है
संघर्ष कर जीने का सुख
यह किसी को छाया नहीं दे सकता
न ही कोई फल
लेकिन थोड़-सी
हरियाली जरूर ।

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