Tuesday, 7 March 2017

अदाकार / शर्मिष्ठा पाण्डेय

नज़र का पानी वो सुलगा के राख करता है
राज़ खूब कीमियागरी के फाश करता है

इन्तेहा पर्दानशीनी की इस कदर है रवां
जला सय्यारों को,धुएं से चाँद ढंकता है

नर्गिसे-मयगूं पे साया किसी आसेब का जान
मय की बोतल पे दुआ हौले-हौले फूंकता है

सीपियों की तन्हाई से बड़ा ग़मगीन रहा
अर्के-जिस्म को मोतियों की जगह रखता है

हरफनमौला है शपा माहिरे-अदाकारी
रूह के शहर में सजा के बदन हँसता है

No comments:

Post a Comment